
राजनीति में वोट बैंक की रणनीति अब नए रंग ले रही है। अक्सर मुस्लिम समाज पर फोकस करने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने अब सिख समुदाय की ओर भी हाथ बढ़ाया है। पार्टी ने महेंद्र सिंह बावा को लखनऊ जिले में अल्पसंख्यक मोर्चा का अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह कदम सिर्फ एक नियुक्ति नहीं, बल्कि सूबे की सियासत में बदलते समीकरणों का संकेत है।
क्यों अहम है महेंद्र सिंह बावा की ताजपोशी?
महेंद्र सिंह बावा लखनऊ सिख समाज के प्रभावशाली चेहरों में से एक हैं। धार्मिक और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में उनकी पकड़ है। सुभासपा ने उन्हें ज़िम्मेदारी सौंपकर साफ कर दिया है कि अब पार्टी मुस्लिम वोटों से आगे बढ़कर सिखों और अन्य अल्पसंख्यकों को भी प्रतिनिधित्व देने के मूड में है।
क्या है सुभासपा की रणनीति?
ओमप्रकाश राजभर की अगुआई वाली सुभासपा ने हाल के चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं को ध्यान में रखकर अल्पसंख्यक मोर्चा को सक्रिय किया था। लेकिन अब पार्टी को ये समझ आ रहा है कि यूपी में सिख समुदाय, खासकर शहरी इलाकों में, राजनीतिक रूप से जागरूक और प्रभावशाली है।
लखनऊ जैसे शहरों में सिख गुरुद्वारों, व्यापार और सामाजिक कार्यों में समुदाय की पकड़ मजबूत है, जिससे सुभासपा को यह उम्मीद है कि बावा की नियुक्ति से सिख समाज का भरोसा और समर्थन दोनों मिलेंगे।
क्या सिर्फ प्रतीकात्मक फैसला है?
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम प्रतीकात्मक से कहीं ज़्यादा है। यह दर्शाता है कि सुभासपा अब केवल पिछड़े और मुस्लिम मतदाताओं तक सीमित नहीं रहना चाहती। पार्टी का विस्तार रणनीतिक रूप से शहरी अल्पसंख्यक वर्गों की ओर भी हो रहा है।
आने वाले चुनावों की तैयारी
उत्तर प्रदेश में आने वाले स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों को देखते हुए सुभासपा अब हर वोट बैंक को साधने की कवायद में जुट गई है। महेंद्र सिंह बावा को ज़िम्मेदारी देना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
सुभासपा की अल्पसंख्यक नीति अब एक नए दौर में प्रवेश कर रही है। सिर्फ मुस्लिमों तक सीमित रहने की बजाय अब पार्टी सिख, ईसाई और अन्य समुदायों को भी प्रतिनिधित्व देकर नया सामाजिक गठजोड़ बना रही है। लखनऊ में महेंद्र सिंह बावा की नियुक्ति इसका स्पष्ट संकेत है।